सुबह का समय
बहुत ही हल्कि रोशनी चारो तरफ बर्फ की सफेद चादर से ढकी हुई जमीन पेड़ो से गिरते बर्फ के गुच्छे ठण्ड इतनी अधिक की जो हड्डीयों को जमा दें, उस ठण्ड के मौसम में शर्द हवा में एक आदमी जो की कम्बल लपेटकर ठण्ड से बचने की कोशिश में हाथ में एक डण्डा जिसे टिकाकर वह चलने की कोशिश कर रहा था, उसके जूते पूरी तरह भीगे हुये थे, व ठण्ड से कंपकंपाते हुये उसके हाथ और लड़खड़ातें हुये उसके पैर, ठण्ड व प्यास से सूखे हुये उसके होंठ, लग रहा था कि किसी भी पल वह गिर जायेगा, वह रातभर से किसी आसियानें की तलाश में भूखा प्याशा बस चले जा रहा था, फिर जब वह एक ऐसी जगह पर पहुँचा जहाँ थोड़ा ढलान था उसे तब एक बस्ती नजर आयी, बस्ती को देखते ही अचानक उसके लड़खड़ाते पैर ढलान पर फिसल जाते है, और वह उस ढलान पर बर्फ के उपर लुड़ककर नीचे फिसल जाता है। और बेहोश हो जाता है। बहुत सी आवाजें शोर बच्चों औरतों व आदमियों के रोने बिलखने की आवाजे लोगों के हाथ पैर कटे हुये धड़ से अलग पड़े हुये और चारो ओर खुन का शैलाब ओर और आग की लपटों में जलतें घर और लोग ओर घोड़ो पर सवार सैकड़ो सैनिक जिन्होने अपने पूरे शरीर पर कवच पहने हुये थे सर पर लोहे का कवच किसी का मुँह भी नही दिख रहा था उनके हाथों में नंगी खून से शनी हुई तलवारें जो कि दौड़ते हुये और लोगो को मारते हुये चले जा रहे थे तभी अचानक से एक घुड़सवार आता है जिसके आते ही सारे सैनिक रूक जाते है वह घोड़े से उतरता है और जैसे ही वह अपना सर का कवच निकालने वाला होता है, वैसे ही अचानक से कम्बल वाला व्यक्ति चैंक कर चिल्लाकर उठ जाता है, जैसे ही उसकी आँखे खुलती है तो वह देखता है कि उसके सर के उपर घास व लकड़ी की बनी छत है, कुछ लोगो कि आवाजें और बच्चों के खेलने और चिल्लाने की आवाजें उसके कानों तक आ रही थी, वह थोड़ी देर सीधे वैसे ही लेटा रहा। थोड़ी देर बाद जब वह पलटा तो वह देखता है कि उसके नीचे एक दरी है जिस पर वह लेटा है। पलटते हुये उसे दर्द भी होता है जैसे कि उसके शरीर पर बहुत सी चोटें लगी हुई हो, दर्द का भाव उसके चेहरे पर झलक रहा था, वह बैठ जाता है और फिर जैसे ही वह अपने पैरों को हिलाने की कोशिश करता है।
जल्द ही दूसरा पार्ट 2 जारी रहेगा।
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